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मुहम्मद गोरी के आक्रमणों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। भारत में उसकी सफलता के क्या कारण थे ?

मुहम्मद गोरी के आक्रमणों का संक्षिप्त विवरण और भारत में उसकी सफलता के कारण

मुहम्मद गोरी, जिन्हें शिहाब-उद-दीन मुहम्मद गोरी के नाम से भी जाना जाता है, 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत पर कई आक्रमणों के लिए प्रसिद्ध हैं। गोरी का उद्देश्य भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों पर विजय प्राप्त करके एक स्थायी साम्राज्य स्थापित करना था, और उनके आक्रमणों का भारतीय इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनके आक्रमणों ने भारत में मुस्लिम शासन की नींव रखी, जिसे बाद में दिल्ली सल्तनत के रूप में सुदृढ़ किया गया।

1. प्रारंभिक जीवन और शक्तिशाली राज्य की स्थापना

मुहम्मद गोरी का जन्म 1149 ईस्वी में हुआ था और वे ग़ज़नी साम्राज्य के ग़ोरी वंश के शासक बने। ग़ोरी वंश मूल रूप से मध्य एशिया के ग़ोर क्षेत्र से था, जो वर्तमान अफगानिस्तान का हिस्सा है। उनके बड़े भाई गियास-उद-दीन गोरी के नेतृत्व में ग़ोरी वंश का विस्तार हुआ और मुहम्मद गोरी को अपने भाई की सहायता से राज्य की सीमाओं को पूर्व की ओर बढ़ाने का काम सौंपा गया।

गोरी के प्रारंभिक आक्रमण भारत पर केंद्रित नहीं थे; शुरुआत में उनका ध्यान ग़ज़नी के आसपास के क्षेत्रों और खुरासान पर था। हालांकि, गज़नी को सुरक्षित करने के बाद, उनका ध्यान भारत के समृद्ध और संसाधन संपन्न क्षेत्र पर गया, जो एक स्थायी विजय का आकर्षण रखता था।

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2. भारत पर मुहम्मद गोरी के आक्रमण

मुहम्मद गोरी ने भारत पर कई बार आक्रमण किया, जिनमें से कुछ सफल रहे और कुछ में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। उनके प्रमुख आक्रमणों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है:

(i) गुजरात पर आक्रमण (1178)

1178 ईस्वी में मुहम्मद गोरी ने गुजरात पर आक्रमण किया, लेकिन उन्हें भारी पराजय का सामना करना पड़ा। गुजरात के चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय ने उनके आक्रमण को विफल कर दिया और गोरी को पीछे हटने पर मजबूर किया। इस पराजय ने उन्हें यह अहसास कराया कि उत्तर भारत पर विजय प्राप्त करने के लिए पश्चिमी भारत से आक्रमण करना उचित नहीं होगा। इस कारण उन्होंने अपना ध्यान उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों की ओर मोड़ा।

(ii) पंजाब पर आक्रमण (1179-1186)

गुजरात में असफल होने के बाद, मुहम्मद गोरी ने पंजाब और सिन्धु घाटी के क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया। 1179 ईस्वी में उन्होंने मुल्तान पर विजय प्राप्त की और फिर 1181 ईस्वी में उन्होंने पेशावर पर अधिकार किया। इसके बाद, उन्होंने लाहौर पर आक्रमण किया और 1186 ईस्वी में ग़ज़नी के पुराने प्रतिद्वंद्वी, ग़ज़नवी वंश को पराजित कर लाहौर पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। लाहौर की विजय ने उन्हें उत्तर भारत में एक स्थायी ठिकाना प्रदान किया और उनके आगे के आक्रमणों का आधार बना।

(iii) तराइन की पहली लड़ाई (1191)

पंजाब पर विजय के बाद, मुहम्मद गोरी ने उत्तरी भारत के राजपूत राज्यों पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जिनका नेतृत्व पृथ्वीराज चौहान (राजा पृथ्वीराज तृतीय) कर रहे थे। 1191 ईस्वी में, तराइन के मैदानों में दोनों सेनाओं के बीच एक निर्णायक युद्ध हुआ। इस युद्ध में, पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी को पराजित किया और उसे वापस लौटने पर मजबूर किया। यह गोरी के लिए एक बड़ा झटका था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अगले वर्ष फिर से आक्रमण की तैयारी की।

(iv) तराइन की दूसरी लड़ाई (1192)

1192 ईस्वी में, मुहम्मद गोरी ने एक और विशाल सेना के साथ भारत पर आक्रमण किया और तराइन के मैदानों में पृथ्वीराज चौहान के साथ दूसरी लड़ाई लड़ी। इस बार गोरी की रणनीति अधिक परिष्कृत थी और उसने राजपूत सेना को रणनीतिक तरीके से पराजित किया। पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया गया और उसकी हत्या कर दी गई। तराइन की दूसरी लड़ाई भारतीय इतिहास में एक निर्णायक घटना थी, जिसने उत्तरी भारत में मुस्लिम शासन की नींव रखी। इस जीत ने गोरी के लिए दिल्ली और अजमेर के द्वार खोल दिए।

(v) राजपूत राज्यों पर विजय

तराइन की दूसरी लड़ाई के बाद, मुहम्मद गोरी ने धीरे-धीरे राजपूत राज्यों को अपने नियंत्रण में लेना शुरू किया। उन्होंने अजमेर, कन्नौज और बनारस जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर कब्जा किया। इसके साथ ही, उन्होंने गंगा-यमुना दोआब के समृद्ध क्षेत्रों पर अपना अधिकार स्थापित किया, जो उन्हें आर्थिक और सामरिक रूप से अत्यधिक लाभकारी साबित हुआ।

(vi) गंगा-यमुना घाटी पर नियंत्रण

मुहम्मद गोरी की सेना ने तराइन के बाद तेजी से आगे बढ़कर उत्तर भारत के महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। उन्होंने कानपुर, मेरठ, अलीगढ़, बदायूं, और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। इसके अलावा, उन्होंने बंगाल के रास्ते भी प्रभाव डालने की कोशिश की, जिससे दिल्ली सल्तनत की सीमाएँ पूर्वी भारत तक फैलीं।

(vii) गोरी की मृत्यु (1206)

1206 ईस्वी में मुहम्मद गोरी की मृत्यु के बाद, उनके गुलाम और सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने उनकी विजय को संभाल लिया और दिल्ली सल्तनत की स्थापना की। गोरी ने भारत में एक मजबूत और संगठित राज्य की नींव रखी, जिसे उनके उत्तराधिकारियों ने और भी सुदृढ़ किया।

3. भारत में मुहम्मद गोरी की सफलता के कारण

मुहम्मद गोरी की भारत में सफलता के कई प्रमुख कारण थे, जिनमें सैन्य रणनीति, भारतीय राजनीतिक परिस्थितियाँ और गोरी के नेतृत्व गुण प्रमुख थे। उनके आक्रमणों की सफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

(i) राजपूतों के बीच एकता की कमी

राजपूत शासकों के बीच आंतरिक कलह और आपसी संघर्ष ने मुहम्मद गोरी के आक्रमणों को सफल बनाया। पृथ्वीराज चौहान और जयचंद (कन्नौज के शासक) के बीच राजनीतिक संघर्ष ने मुहम्मद गोरी के लिए एक अनुकूल परिस्थिति पैदा की। जयचंद और पृथ्वीराज के बीच पुरानी दुश्मनी थी, जिसका फायदा गोरी ने उठाया। यदि राजपूत एकजुट होते, तो शायद गोरी के आक्रमणों को रोक सकते थे।

(ii) गोरी की सामरिक कुशलता

मुहम्मद गोरी एक कुशल और अनुभवी सेनापति थे। उन्होंने युद्ध के मैदान में अपनी सेना की रणनीति को परिष्कृत किया और घुड़सवार सेना और धनुर्धारियों का उपयोग बड़ी कुशलता से किया। तराइन की दूसरी लड़ाई में उन्होंने राजपूतों के परंपरागत युद्ध के तरीके का सफलतापूर्वक सामना किया और युद्ध को अपनी शर्तों पर लड़ा।

(iii) मुस्लिम सेना की अनुशासन और रणनीति

गोरी की सेना संगठित, अनुशासित और युद्ध कौशल में निपुण थी। उनकी सेना में घुड़सवार और धनुर्धारी सैनिकों की प्रमुखता थी, जो राजपूतों के मुकाबले में अधिक तेज और प्रभावी थे। घुड़सवार सेना की कुशलता और गतिशीलता ने उन्हें युद्ध के मैदान में बड़ी सफलता दिलाई।

(iv) राजपूत युद्ध प्रणाली की सीमाएँ

राजपूतों की युद्ध प्रणाली परंपरागत और पुरानी थी। वे मुख्यतः तलवारबाजी और व्यक्तिगत वीरता पर निर्भर रहते थे, जबकि गोरी की सेना सामरिक रूप से अधिक संगठित थी। राजपूतों की व्यक्तिगत वीरता के बावजूद, उनकी युद्ध प्रणाली सामूहिक रूप से प्रभावी नहीं थी।

(v) गोरी की राजनैतिक दूरदर्शिता

मुहम्मद गोरी की राजनैतिक दूरदर्शिता और राजनैतिक कौशल भी उनकी सफलता का एक प्रमुख कारण था। उन्होंने भारतीय राजाओं के आपसी विवादों का लाभ उठाया और विभिन्न राजपूत शासकों के बीच फूट डालकर अपनी विजय को सुनिश्चित किया। गोरी ने स्थानीय शासकों को पराजित करने के बाद, उनके साथ मित्रता भी स्थापित की, जिससे उनके नियंत्रण को मजबूत किया गया।

(vi) आर्थिक समृद्धि और प्रशासनिक कुशलता

भारत के समृद्ध क्षेत्र, विशेषकर गंगा-यमुना दोआब, गोरी के लिए आकर्षण का केंद्र थे। इन क्षेत्रों की कृषि और व्यापारिक समृद्धि ने गोरी की विजय को आर्थिक रूप से स्थायी बनाया। साथ ही, उनके प्रशासनिक कुशलता ने उनके द्वारा जीते गए क्षेत्रों में स्थिरता प्रदान की।

निष्कर्ष

मुहम्मद गोरी के आक्रमणों ने भारत के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ दिया। उनकी विजय ने भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम शासन की नींव रखी, जिसे बाद में दिल्ली सल्तनत ने सुदृढ़ किया। गोरी की सैन्य क्षमता, राजनीतिक सूझबूझ, और भारतीय राजाओं के आपसी विवादों का लाभ उठाने की रणनीति ने उन्हें सफल बनाया। उनके आक्रमणों ने भारत में एक नई राजनीतिक और सांस्कृतिक धारा का प्रवेश करवाया, जिसका प्रभाव कई शताब्दियों तक रहा।

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