फिरोज शाह तुगलक की उपलब्धियों की विवेचना
फिरोज शाह तुगलक (शासनकाल: 1351-1388 ईस्वी) दिल्ली सल्तनत के तुगलक वंश के तीसरे सुल्तान थे। उनका शासनकाल तुगलक वंश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, और उन्हें अपने प्रशासनिक सुधारों, सामाजिक कल्याण कार्यों, और शांति प्रिय नीतियों के लिए जाना जाता है। फिरोज शाह तुगलक ने अपने पूर्ववर्तियों द्वारा किए गए गलतियों से सीखकर एक स्थायी और सुव्यवस्थित शासन प्रणाली की स्थापना की। उनका शासनकाल राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक पुनर्निर्माण का प्रतीक था, हालांकि वह सैन्य दृष्टि से उतने सफल नहीं माने गए।
1. प्रारंभिक जीवन और सत्ता पर अधिकार
फिरोज शाह तुगलक का जन्म 1309 ईस्वी में हुआ था। वह सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के भतीजे और मुहम्मद बिन तुगलक के चचेरे भाई थे। फिरोज शाह ने अपने चचेरे भाई मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के बाद 1351 ईस्वी में दिल्ली की गद्दी संभाली। उनका शासनकाल उस समय शुरू हुआ जब दिल्ली सल्तनत कई आंतरिक विद्रोहों और बाहरी आक्रमणों से जूझ रही थी। मुहम्मद बिन तुगलक के असफल सैन्य अभियानों और आर्थिक नीतियों के कारण राज्य की स्थिति कमजोर हो गई थी, और फिरोज शाह को इस स्थिति को सुधारने की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई।
2. फिरोज शाह तुगलक की उपलब्धियाँ
(i) प्रशासनिक सुधार
फिरोज शाह तुगलक ने दिल्ली सल्तनत के प्रशासनिक ढांचे में कई महत्वपूर्ण सुधार किए। उनका शासनकाल प्रशासनिक स्थिरता और सामाजिक कल्याण की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण था। उनके प्रशासनिक सुधारों में निम्नलिखित शामिल हैं:
जागीरदारी प्रणाली का पुनर्गठन: फिरोज शाह ने जागीरदारी प्रणाली को और भी व्यवस्थित किया। उन्होंने राज्य के अमीरों और अधिकारियों को जागीरों का वितरण किया, जिससे राज्य की राजस्व व्यवस्था सुदृढ़ हुई। जागीरदारों को भूमि का स्वामी बना दिया गया, जो राज्य के राजस्व का प्रमुख स्रोत बन गया।
वितरण और राजस्व नीति: फिरोज शाह तुगलक ने राजस्व संग्रह प्रणाली को सुधारने के लिए नई नीतियों को लागू किया। उन्होंने ‘अधिरोपित कर’ की नीति को समाप्त किया, जो मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में लागू की गई थी और किसानों पर बोझ बन गई थी। उन्होंने किसानों पर करों का बोझ कम किया और कृषि को प्रोत्साहन दिया।
विभागों की स्थापना: फिरोज शाह ने अपने शासन में कई प्रशासनिक विभागों की स्थापना की। इनमें ‘दीवान-ए-खैरात’ (दान और सामाजिक कल्याण विभाग), ‘दीवान-ए-बंदगान’ (गुलामों का विभाग), और ‘दीवान-ए-इस्तियाक’ (अधिग्रहण विभाग) प्रमुख थे। ये विभाग शासन व्यवस्था को अधिक सुव्यवस्थित और जनहितकारी बनाने में सहायक सिद्ध हुए।
(ii) सामाजिक कल्याण और दान
फिरोज शाह तुगलक को सामाजिक कल्याणकारी सुल्तान के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपने शासनकाल में गरीबों और जरूरतमंदों के कल्याण के लिए कई योजनाएं और नीतियां लागू कीं। उनकी प्रमुख सामाजिक कल्याणकारी उपलब्धियां निम्नलिखित हैं:
गुलामों की मुक्ति और कल्याण: फिरोज शाह तुगलक ने अपने शासनकाल में एक बड़ी संख्या में गुलामों को स्वतंत्र किया। इसके अलावा, उन्होंने ‘दीवान-ए-बंदगान’ नामक विभाग की स्थापना की, जो गुलामों के कल्याण और उनकी मुक्ति के लिए काम करता था। यह विभाग गुलामों को स्वतंत्र नागरिक बनाने और उन्हें समाज में स्थापित करने का काम करता था।
अनाथालय और धर्मशालाएं: फिरोज शाह ने अपने शासनकाल में अनाथालय, धर्मशालाएं और अस्पतालों की स्थापना की, जहां गरीब और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और चिकित्सा सहायता प्रदान की जाती थी। उन्होंने दिल्ली और अन्य प्रमुख नगरों में धर्मशालाएं बनवाईं, जिनका उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को सहारा देना था।
कृषि और सिंचाई परियोजनाएं: फिरोज शाह तुगलक ने किसानों की दशा सुधारने और कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सिंचाई परियोजनाओं की शुरुआत की। उन्होंने नहरों और बांधों का निर्माण करवाया, जिससे किसानों को पर्याप्त पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। सबसे प्रसिद्ध सिंचाई परियोजना यमुना नदी से हरियाणा में हिसार तक की नहर थी। इन नहरों ने कृषि क्षेत्र को समृद्ध किया और राज्य की आय में भी वृद्धि की।
(iii) शिक्षा और विद्वानों का संरक्षण
फिरोज शाह तुगलक ने शिक्षा के प्रसार और विद्वानों के संरक्षण के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए कई मदरसों और पुस्तकालयों की स्थापना की। उनके शासनकाल में विद्वानों, कवियों, और धार्मिक व्यक्तियों को विशेष मान्यता दी गई। उन्होंने इस्लामी शिक्षा के प्रसार के लिए मदरसों का निर्माण किया और विद्वानों को आर्थिक सहायता दी।
(iv) धार्मिक नीति और इस्लामी कानून का पालन
फिरोज शाह तुगलक ने अपने शासनकाल में इस्लामी कानून (शरिया) के पालन पर विशेष जोर दिया। वह धार्मिक रूप से एक कट्टर मुसलमान थे और इस्लामी कानून को राज्य की नीतियों में लागू करने के लिए प्रतिबद्ध थे। उन्होंने कई गैर-इस्लामी प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाया और न्याय प्रणाली में शरिया के सिद्धांतों को प्रमुखता दी।
हालांकि, उनके शासनकाल में हिंदू समुदाय के साथ अत्यधिक कट्टरता का व्यवहार नहीं किया गया। फिरोज शाह ने हिंदुओं पर ‘जज़िया’ (गैर-मुस्लिमों पर कर) लागू किया, लेकिन उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता की नीति भी अपनाई और हिंदू मंदिरों को तोड़ने की प्रवृत्ति को कम किया।
(v) नई नगरियों का निर्माण
फिरोज शाह तुगलक का एक अन्य प्रमुख योगदान नई नगरियों और भवनों का निर्माण था। उन्होंने अपने शासनकाल में कई नगरियों और किलों का निर्माण कराया, जो आज भी उनके शासन की स्थापत्यकला का प्रतीक हैं। उन्होंने दिल्ली के पास फिरोजाबाद नामक एक नई नगरी का निर्माण किया, जिसे उनके नाम पर रखा गया था। इसके अलावा, उन्होंने कई मस्जिदों, मदरसों, और सार्वजनिक भवनों का निर्माण कराया।
उनके द्वारा निर्मित सबसे प्रसिद्ध स्थापत्य स्मारक ‘हिसार-ए-फिरोजा’ था, जिसे हरियाणा के हिसार जिले में बनाया गया। इसके अलावा, उन्होंने पुराने स्मारकों का पुनर्निर्माण और संरक्षण भी किया, जैसे अशोक के स्तंभ को मेरठ से दिल्ली लाना और इसे फिरोज शाह कोटला में स्थापित करना।
(vi) सैनिक और प्रशासनिक विफलताएँ
हालांकि फिरोज शाह तुगलक का शासनकाल प्रशासनिक और सामाजिक दृष्टिकोण से सफल था, लेकिन सैन्य दृष्टि से उनके शासन को कमजोर माना जाता है। उन्होंने अपने पूर्ववर्ती मुहम्मद बिन तुगलक की तुलना में अधिक शांतिपूर्ण नीति अपनाई और नए क्षेत्रों का विस्तार करने के बजाय राज्य के आंतरिक मामलों पर ध्यान केंद्रित किया।
उनकी सैन्य कमजोरी का फायदा उठाकर बंगाल और दक्कन जैसे क्षेत्रों ने स्वतंत्रता की घोषणा की, जिससे दिल्ली सल्तनत का क्षेत्रीय नियंत्रण कमजोर हो गया। इसके अलावा, उनके शासनकाल में विदेशी आक्रमणों की संख्या में वृद्धि हुई, जैसे कि तैमूर के आक्रमण, जिसने दिल्ली की स्थिति को कमजोर किया।
3. फिरोज शाह तुगलक की सीमाएँ और आलोचना
(i) कट्टर इस्लामी नीतियाँ
फिरोज शाह तुगलक की कट्टर इस्लामी नीतियों की आलोचना भी की जाती है। उन्होंने हिंदुओं पर जज़िया कर लगाया और कई गैर-मुस्लिमों पर अत्यधिक करों का बोझ डाला। उन्होंने हिंदू धार्मिक स्थलों और मंदिरों पर कई बार हमले भी किए, जिससे उनकी धार्मिक सहिष्णुता की नीति की आलोचना हुई।
(ii) सैन्य असफलताएँ और क्षेत्रीय ह्रास
फिरोज शाह तुगलक ने अपनी सैन्य कमजोरी के कारण बंगाल, दक्कन और गुजरात जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को खो दिया। उनके शासनकाल में इन क्षेत्रों ने स्वतंत्रता की घोषणा की और दिल्ली सल्तनत की क्षेत्रीय अखंडता कमजोर हो गई।
4. निष्कर्ष
फिरोज शाह तुगलक का शासनकाल दिल्ली सल्तनत के इतिहास में प्रशासनिक और सामाजिक सुधारों के लिए जाना जाता है। उन्होंने प्रशासन को सुदृढ़ किया, किसानों और गरीबों के कल्याण के लिए कई योजनाएँ लागू कीं, और राज्य में शांति और स्थिरता स्थापित की। हालांकि उनकी सैन्य नीतियाँ कमजोर थीं और क्षेत्रीय नियंत्रण में गिरावट आई, फिर भी उनके शासनकाल में सामाजिक और आर्थिक उन्नति ने उन्हें एक प्रभावशाली शासक के रूप में स्थापित किया। उनकी स्थापत्यकला, शिक्षा के प्रति उत्साह, और सामाजिक कल्याण के कार्य उनके शासनकाल को विशेष बनाते हैं।
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