"अवक्रय करार" एक वित्तीय या वित्तीय संबंधित विवाद के समाधान के लिए प्रयुक्त होने वाला एक समझौता होता है जो दो पक्षों के बीच किसी संविदानिक या कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से होता है। इसकी कुछ मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं:
1. समझौता: अवक्रय करार एक समझौता होता है जिसमें दो पक्ष आपसी सहमति पर पहुँचते हैं। यह एक स्थिर या समझौते की विचारिक प्रक्रिया के माध्यम से होता है जिसमें दोनों पक्ष अपने विवाद के समाधान के लिए सहमति प्रकट करते हैं।
2. नियमों का पालन: अवक्रय करार आमतौर पर संविदानिक नियमों और कानूनी प्रक्रिया का पालन करता है। इसमें न्यायिक प्रक्रिया के साथ ही अनिवार्य तरीके से उपायोग किए जाने वाले कानूनी तरीके शामिल होते हैं।
3. सुलझाव की व्यक्ति: अवक्रय करार के अंतर्गत विवाद सुलझाने की प्रक्रिया के बारे में एक प्रमुख व्यक्ति होती है, जिसे "सुलझाव की व्यक्ति" कहा जाता है। यह व्यक्ति विवाद के विवादकों के बीच समझौते को प्रमोट करने में मदद करती है और न्यायिक प्रक्रिया का आयोजन करती है।
4. समय सीमा: अवक्रय करार में आमतौर पर समय सीमा होती है, जिसके अंतर्गत विवादकों को निश्चित समय तक समझौते पर पहुँचना होता है।
5. न्यायिक प्रयास की छूट: अवक्रय करार का उपयोग करने से न्यायिक प्रक्रिया को अटकाने और लंबित करने से बचा जा सकता है, जिससे समय और लागत कम होती है।
6. संरक्षा: अवक्रय करार के तहत, विवादकों की संरक्षा भी प्रदान की जा सकती है, क्योंकि इससे विवाद से जुड़े अन्य कानूनी प्रक्रियाओं की आवश्यकता कम होती है।
यह विशेषताएँ अवक्रय करार को एक प्रमुख विधि बनाती हैं जिसका उपयोग विवादों के तत्विक और समृद्ध समाधान के लिए किया जाता है।
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